"विश्व पुस्तक दिवस"


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यह लॉकडाउन बड़ा ही विचित्र है। हमारे रिरियाने-घिघियाने और दीवारों को दिखा-दिखाकर विभिन्न एंगल का मुँह बनाने के दौर में स्टील की रैक या सीमेन्टेड अलमारी में रखी किताबों का आपसी विचार-विमर्श हमारी भूतिया हरक़तों को लेकर बीते उनतीस दिनों में ज़रूर हुआ होगा। दुनिया इस समय घनघोर चुप्पी साधने पर लगी है। बहुत कम हरक़त, चुप्पी ज़्यादा। अलबत्ता इसे लग रहा होगा कि ज़रूर कोई तालिबानी हमला हुआ है। और ऐसे समय में इंसान अपनी बड़ी कोठी, फ्लैट, चॉल के कमरे या झोपड़ी में साइलेंट रहते हुए दीवार घड़ी की वायलेंट  धड़कन को सुन रहे हैं, जिसे लॉकडाउन के दिनों से पहले शायद कभी सुना नहीं गया या फिर 'नेगलेक्ट' कर दिया।
         ख़ैर, विश्व पुस्तक दिवस आते-आते इन किताबों को भी देश में लगी किसी इमरजेंसी का पता चल ही गया होगा। पता चले भी क्यों न भाई! जिन किताबों के सफ़ेद सिर को केवल मकड़ी, जाला और धूल ही सहलाते थे, उसे नए पाठकों ने भी सहलाना शुरू कर दिया है। क़िताबों को भी सब पता है कि यह साथ कब तक गहरायेगा। कई जगह कुछ दिनों के लिए उन्हें एक बेशक़ीमती फोन की तस्वीर में उतारे जाने के लिए उनकी भी डेंटिंग-पेंटिंग शुरू हो गयी है। जिसके बाद उन्हें फेसबुक, ट्विटर और इंस्टा हैंडल के गुमनाम ब्रह्मांड में भेज दिया जाएगा और वो उसी में तैरते-तैरते किसी ध्वस्त हुए सैटेलाइट के अंगों की मानिंद गुम हो जाएँगी। फिर कोई इन अंगों की तफ़्तीश करने नहीं आएगा।
        फ़िलहाल, कई पाठक क़िताबों से इतना प्यार करते हैं कि साल भर तो क़िताबें ख़रीदते ही हैं लेकिन विश्व पुस्तक दिवस वाले दिन ख़ासतौर से क़िताब ख़रीदकर पढ़ना चाहते हैं। वैसे बकौल मैं, विश्व पुस्तक दिवस क़िताबों का विश्व-घोषित जन्मदिन ही तो है। क़िताबों के इश्क़िया मरीज़ इस दिन अपनी हद से ज़्यादा प्यारी क़िताबों से कोई कहानी, कविता या लेख का अंश ज़रूर किसी न किसी को पढ़कर सुनाते हुए मिल जाएँगे। आज ही का दिन होता है, जब क़िताबों के ऑनलाइन बाज़ार के साथ ऑफलाइन बाज़ार में पाठकों की रौनक देखने को मिल जाती है। पुस्तक मेले या फिर किसी यूनिवर्सिटी/कॉलेज के फेस्ट से इतर यही दिन है जब धरातली आयोजकों या किसी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय न्यूज़ चैनल पर फिर किसी बेहतरीन क़िताब से जुड़ी परिचर्चा-संवाद और गोष्ठी का आयोजन भी किया जाता है। यही दिन है जब उकड़ूँ बैठ पाठकवर्ग अपनी पसंदीदा क़िताब के कुछ पन्ने पढ़ते हुए चेहरे को विभिन्न भावभंगिमाएँ ज़रूर मुहैया करवाता है। विदेशों में आपको कुछ दीवाने क़िताबों का केक काटते हुए भी मिलेंगे। अब क्या किया जाए जनाब! इश्क़ की तासीर ही ऐसी होती है, एकदम दुनिया से परे। वैसे एक बात और है! पाठकों को इस लॉकडाउन में विश्व पुस्तक दिवस पर ऑनलाइन ख़रीदारी की वेबसाइट्स पर एक निराशा भी हाथ लगी होगी। वो यह कि जिसने भी फ्लिपकार्ट या अमेज़न पर अपनी पसंदीदा क़िताब को सर्च करके ऑर्डर करने का सोचा होगा, उसे ये दो शब्द ज़रूर मिले होंगे: 'करेंटली अनअवेलेबल।' इन अभागे सेलिब्रेटर्स में एक मैं भी रहा। फ़िलहाल, तुम्हें तुम्हारा जन्मदिन मुबारक हो मेरी क़िताबों।

                    -खेरवार ❤️

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